hindisamay head


अ+ अ-

कविता

सुरताल

दिविक रमेश


समझ
थी भी कहाँ सुरताल की।
मैंने तो मिला लिया था
स्वरों में स्वर
यूँ ही।

यूँ ही
गाता रहा पगडंडियों से खेतों तक
खेतों से
खलिहानों तक।

बस गाता रहा
आकाश, धरती, सब कुछ
कहाँ मालूम था मुझे
संगीत
यूं बन जाता है आदमी।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में दिविक रमेश की रचनाएँ